कांग्रेस के खेल को बिगाड़ते सोज़ |
इतिहास अवलोकन करने पर एक बात जरूर स्पष्ट होती है कि जितने विवादित बयान कांग्रेस की तरफ से आते रहे है, उतने किसी अन्य पार्टी की तरफ से नहीं आए।
जब देश में प्रधानमंत्री मनोनीत करने पर वोटिंग में जवाहरलाल नेहरू तीन वोट और समस्त वोट सरदार पटेल के पक्ष में आने पर नेहरू ने महात्मा गाँधी नेहरू की कांग्रेस को तोड़ने की धमकी के आगे नतमस्तक होकर, पटेल की बजाए हारे हुए उम्मीदवार नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया। और उसी नेहरू ने महात्मा गाँधी की भाँति भारत में हुए प्रथम चुनाव में लोकतन्त्र का गला घोंट दिया यानि रामपुर से हिन्दू महासभा के प्रत्याक्षी बिशन सेठ ने नेहरू की लाडले मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को लगभग 6000 वोटों से हराया, जो नेहरू से बर्दाश्त से बर्दाश्त नहीं हुई। तुरन्त उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोबिन्द बल्लब पंत को मौलाना आज़ाद को संसद में देखने को कहा और पंत ने साम, धाम, दण्ड और भेद अपनाते हुए बिशन को विजयी जलूस से उठवाकर मतगणना केन्द्र ले जाकर, उनकी वोटें आज़ाद में मिलवाकर पराजित हुए आज़ाद को विजयी घोषित करवा दिया। शेख अब्दुल्ला को किस आधार पर जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री बनाया? किस आधार पर जम्मू-कश्मीर जाने के लिए परमिट प्रथा लागू की थी? यानि नेहरू ने कश्मीर को विवादित बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिस कारण भारत आज तक कश्मीर मसले को सुलझाने की आग में जल रहा है।
वर्तमान में, पुरुषोत्तम श्रीराम को ही काल्पनिक बताने में गुरेज नहीं किया, खुदाई में मिले रामजन्मभूमि के मिले अनेको अवशेषों को छुपा, केवल एक ही खम्बा दिखा कर कोर्ट को गुमराह किया। खुदाई में इतने अधिक अवशेष मिले थे कि कोई मुस्लिम भी उस स्थान को रामजन्म स्थान होने से इंकार नहीं कर सकता था। लेकिन सबूतों को छिपा कर विवादित बना दिया। उसी तर्ज़ पर आज कांग्रेस नेता कश्मीर पर विवादित बयान देकर कश्मीरियों और अन्य लोगो को भ्रमित कर रहे हैं और कांग्रेस ऐसे किसी भी नेता को पार्टी से निष्कासित करने का साहस तक नहीं कर पा रही, क्यों? इतना ही नहीं, समस्त गैर-भाजपाई पार्टियाँ तक खुलकर ऐसे नेताओं की भर्त्सना भी नहीं कर रहे, शर्म की बात है।
कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज ने जम्मू-कश्मीर को लेकर एक बार फिर से विवादित बात कही है. सरदार पटेल व्यावहारिक थे और कश्मीर को लियाकत अली खान (तब पाक प्रधान मंत्री) की पेशकश की थी. सरदार वल्लभ भाई पटेल हमेशा चाहते थे कि कश्मीर का विलय पाकिस्तान में हो जाए, लेकिन जवाहर लाल नेहरू ऐसा नहीं चाहते थे. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की वजह से ही जम्मू-कश्मीर भारत के पास है. अपनी किताब की लांचिंग के मौके पर सैफुद्दीन सोज ने कहा कि सरदार पटेल कश्मीर को पाकिस्तान को देने के पक्ष में थे.
सैफुद्दीन सोज ने न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में कहा, 'सरदार पटेल ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को कश्मीर की पेशकश की थी. पटेल ने लियाकत से कहा था कि हैदराबाद के बारे में बात मत करो, अगर आप चाहो तो कश्मीर ले लो. लियाकत अली खान युद्ध की तैयारी में था, लेकिन सरदार पटेल ऐसा नहीं चाहते थे.'
इससे पहले 22 जून को सैफुद्दीन सोज ने कश्मीर पर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के ‘आजादी’ वाले विचार का समर्थन किया था. हालांकि विवाद बढ़ने के बाद कहा था बलप्रयोग से कश्मीर मुद्दे का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि बातचीत से ही कोई रास्ता निकलेगा.
कांग्रेस ने सैफुद्दीन के बयान से पल्ला झाड़ा
सैफुद्दीन सोज की किताब में कश्मीर के संदर्भ में की गई बात को खारिज करते हुए कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि किताब बेचने के लिए सोज के सस्ते हथकंडे अपनाने से यह सत्य नहीं बदलने वाला है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है. सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई सोज के खिलाफ उचित कार्रवाई करेगी.
Sardar Patel was pragmatist & offered Kashmir to Liaquat Ali Khan (then Pak PM). He told him 'don't talk of Hyderabad, talk Kashmir; take Kashmir, but don't talk of Hyderabad' as Khan was preparing for war & Patel wasn't: Saifuddin Soz, Congress during his book launch (25.06.18)
दरअसल, सोज ने अपनी पुस्तक 'कश्मीर: ग्लिम्पसेज ऑफ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ स्ट्रगल' में परवेज मुशर्रफ के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर के लोग भारत या पाक के साथ जाने की बजाय अकेले और आजाद रहना पसंद करेंगे.
यूपीए सरकार में मंत्री रहे सोज ने यह भी दावा किया कि घाटी में मौजूदा हालात के लिए भाजपा नीत केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं.
अवलोकन करें:--
उन्होंने कहा, ‘भारत और पाकिस्तान पड़ोसी देश हैं और दोनों परमाणु हथियारों वाले देश हैं. दोनों ज्यादा समय तक दुश्मनी में नहीं रह सकते. इसलिए मजबूत कदम उठाए जाने चाहिए. बातचीत होनी चाहिए.’
जम्मू-कश्मीर में नई सरकार के गठन की संभावना पर सोज ने कहा, ‘अगर नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और पीडीपी के कुछ लोग साथ आ सकते हैं तो मिल बैठकर और बात करके सरकार बना सकते हैं. सरकार बन सकती है और फिर वह सरकार वक्त आने पर चुनाव कराए.’ उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोगों के लिए शांतिपूर्ण माहौल की स्थापना जरूरी है, जिससे यहां के लोग शांति से रह सकें.
सोज के बयान पर अमित शाह ने कांग्रेस को घेरा
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि उनकी पार्टी कभी भी जम्मू-कश्मीर को देश से अलग किए जाने की अनुमति नहीं देगी. उन्होंने आतंकवादियों के समान विचार रखने के लिए कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और सैफुद्दीन सोज की आलोचना की.
शाह ने कहा, ‘श्रीमान सोज आप सैकड़ों जन्म लेंगे, लेकिन बीजेपी कश्मीर को भारत से अलग नहीं होने देगी.’ उन्होंने यहां एक जन सभा में कहा, ‘जम्मू - कश्मीर देश का अभिन्न हिस्सा है और श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी कुर्बानी देकर इसे एक किया है.’
जम्मू - कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने हाल में कहा था कि सुरक्षा बल घाटी में आतंकवादियों से ज्यादा नागरिकों को मार रहे हैं. शाह ने कहा कि आजाद के बयान के तुरंत बाद लश्कर ए तैयबा ने बयान जारी कर उनका समर्थन किया.
उन्होंने कहा, ‘लश्कर ए तैयबा और कांग्रेस के बीच विचारों की कितनी समानता है.’ उन्होंने पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी से कहा कि वह बताएं कि किस तरह आजाद और लश्कर के विचार एकसमान हैं. शाह जब कांग्रेस पर निशाना साध रहे थे तो लोग ‘गद्दारों को फांसी दो’ के नारे लगा रहे थे.
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को आजाद और सोज दोनों को देश के लोगों से माफी मांगने के लिए कहना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘मैं जम्मू - कश्मीर के लोगों को फिर से आश्वस्त करना चाहता हूं कि कोई भी इसे भारत से अलग नहीं कर सकता.’
कांग्रेस के लिए दूसरे मणिशंकर अय्यर साबित होते सैफुद्दीन सोज
मौजूदा हालात में उनके बयान ने कश्मीर के मुद्दे पर घिरी बीजेपी को एक नया हथियार दे दिया है. इस हथियार की प्रवृत्ति कुछ वैसी ही होगी जैसी कांग्रेस के निलंबित नेता मणिशंकर अय्यर के पूर्व में दिए दो बयानों की हुई थी. अय्यर ने 2014 लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को चायवाला कहा था और गुजरात विधानसभा 2017 के पहले मोदी के लिए आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया था.दोनों ही मौकों पर बीजेपी ने इन शब्दों की अपने हिसाब से व्याख्या की और बात को कहीं से कहीं पहुंचा दिया. चायवाले बयान के समय तो कांग्रेस बहुत सतर्क नहीं थी, लेकिन गुजरात चुनाव के समय दिए गए बयान के बाद कांग्रेस ने अय्यर को तुरंत पार्टी से निकाल दिया. अय्यर पूर्व राजनयिक होने के साथ ही अत्यंत पढ़े-लिखे लोगों में शुमार होते हैं. लेकिन उन्होंने ऐसे मौकों पर गलत शब्दों का चयन कर लिया, जब पार्टी को उनसे बचने की जरूरत थी.
पुस्तक बेचने के लिए ओछे हथकंडे
अबकी बार सोज भी यही कर रहे हैं. कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस की सतर्कता का आलम यह था कि 20 जून को जब इस विषय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद से संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट के बारे में पूछा गया, जिसमें भारत पर कश्मीर में मानवाधिकार हनन के आरोप लगाए गए थे. आजाद ने इस सवाल को लेने से ही यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उन्होंने ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं पढ़ी है. लिहाजा वे उस पर टिप्प्णी नहीं करेंगे. यानी कांग्रेस किसी भी संभावित विवाद से खुद को बचाना चाहती थी.
कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यहां तक कहा कि अगर कोई अपनी किताब बेचने के लिए ओछे हथकंडे अपनाता है तो उससे कश्मीर की हकीकत नहीं बदल जाती. कश्मीर भारत का अंग था, है और सदैव रहेगा.
लेकिन कश्मीर जैसे संवेदनशील मामले पर सोज के बयान ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया है. सोज के बोल कांग्रेस की रणनीति के उलट हैं. सोज से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी आतंकवाद और आरएसएस के संबंधों को लेकर बयान दिया था. वह भी राहुल की कांग्रेस की नीति से अलग था.
राहुल गांधी इस समय जिस सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति पर चल रहे हैं, उसमें सोज, दिग्विजय या अय्यर के बयान पार्टी का माहौल ही बिगाड़ेंगे. कांग्रेस जिस तरह इस कोशिश में लगी है कि लोगों को याद दिलाया जाए कि आजादी की लड़ाई उसी ने लड़ी है और असली राष्ट्रवादी तो कांग्रेस ही है, उसमें कश्मीर के मामले में ऐसे बयान को संभालना पार्टी के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा.
सतह से उठने की कोशिश में जुटी राहुल की कांग्रेस फिर कुछ बड़े फैसले लेगी. लेकिन ऐसे समय में जब तीन प्रमुख राज्यों में इसी साल चुनाव होने हैं और उसके बाद लोकसभा चुनाव भी सर पर हैं, तब अपने विरोधियों को थाली में परोसकर मुद्दा देने वाले नेताओं के बारे में राहुल गांधी को बहुत कुछ करना होगा.
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