आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
जनवरी महीने से कश्मीर में पत्थरबाजों की कैद में रहे बागपत और सहारनपुर जनपद के दर्जनों युवक आखिरकार छूटकर भाग निकलने में सफल रहे। कश्मीर से छूटकर घर पहुंचे पीड़ित युवकों ने बताया कि वे कश्मीर में सिलाई की फैक्ट्री में नौकरी करने गए थे, लेकिन फैक्ट्री मालिक ने कश्मीरियों की मदद से उन्हें बंधक बना लिया और उन्हें पत्थरबाजी करने की ट्रेनिंग देकर सेना के जवानों पर पत्थरबाजी करने को मजबूर किया। पीड़ितों का कहना है कि जब इन लोगों ने सेना के जवानों पर पत्थरबाजी से इंकार कर दिया तो इन्हें मारा-पीटा जाता था। क्या कश्मीर राज्यपाल उस आरोपी फैक्ट्री मालिक के विरुद्ध कार्यवाही करेंगे?
नेशनल कांफ्रेंस और अलगाववादी नेता अक्सर कहते हैं कि "ये पत्थरबाज देश विरोधी नहीं, बल्कि अपनी आज़ादी के लिए सडकों पर हैं। पत्थरबाजों के समर्थक नेता शायद नहीं जानते कि आज़ादी के दीवाने सीना ठोक कर सामने आते हैं, मुँह छिपाकर नहीं।
मुज़फ्फरनगर दंगे की फाइलों को खोलना होगा
दूसरे, जिस तरह से उत्तर प्रदेश का कश्मीर पत्थरबाजों का जाल फैला होने के समाचार आ रहे हैं, तो इस सन्दर्भ में 2013 में हुए मुज़फ्फरनगर में हुए दंगों की फाइलों को दोबारा खोल, जाँच करनी होगी कि मस्जिदों में भारी मात्रा में AK-47 आदि कहाँ से आए और किन सूत्रों ने मदद की? उस समय हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते दंगों पर प्रकाशित विस्तृत रपट में स्पष्ट रूप से प्रश्न किया भी था। रपट प्रकाशित होने के बाद भाजपा बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित "मुज़फ्फरनगर दंगा: एक सच" में तत्कालीन भाजपा नेता हुकुम सिंह(अब स्वर्गीय) ने जो कहा, प्रकाशित रपट के एक-एक शब्द को सत्यापित कर रहे थे। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने वोट बैंक को बचाने की खातिर मस्जिदों से बरामद भारी मात्रा में मिली AK-47 के मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डाल दिया। क्यों? लगता है अखिलेश को देश से अधिक अपना वोट बैंक अधिक प्यारा था? उन फाइलों को पुनः खोल इन्हे फंडिंग करने वालों को भी प्रकाश में लाना होगा।
इंडस्ट्रियल फर्म में नौकरी करते थे सभी युवक
बड़ौत कोतवाली थाना क्षेत्र के गुराना रोड पर रहने वाले युवक नसीम ने बताया कि वह इसी साल जनवरी महीने के आखिर में बालैनी थाना क्षेत्र के डोलचा गांव निवासी शमीम, ढिकाना गांव निवासी अंकित, सहारनपुर जनपद के नानौता निवासी मोहम्मद अजीम राव, नकुड़ निवासी बबलू और पंकज और अन्य युवकों के साथ कश्मीर के पुलवामा में लस्तीपुरा गए थे. वहां उन्हें डिवाइन इंडस्ट्रियल फर्म में सिलाई की नौकरी मिल गई थी. उसी फैक्ट्री में कश्मीर के भी कई युवक काम करते थे. फैक्ट्री मालिक एजाज वाणी उन पर पत्थरबाजी करने का दवाब बनाने लगा.
सेना पर जबरन पत्थरबाजी करवाया जाता था
कश्मीर में जब भी सेना के जवान किसी आतंकवादी का एनकाउंटर करते थे, तो आतंकवादी गांव में घुस जाते थे और किसी भी मकान में शरण ले लेते थे. उसके बाद स्थानीय लोग सेना के ध्यान को भटकाने के लिए उन पर पत्थरबाजी शुरू कर देते थे. युवकों ने बताया कि उनके साथ वहां पर मारपीट भी की जाती थी.
एक स्थानीय की मदद से भागने में हुए कामयाब
सेना पर जबरदस्ती पत्थरबाजी से तंग आकर ये लोग वहां से किसी तरह भाग निकलना चाहते थे. वहां से भागने के लिए इनलोगों ने वहां के ही एक स्थानीय शख्स से संपर्क किया. उसने कश्मीर से बाहर निकालने के लिए 10 हजार रुपए मांगे. इन्होंने 10 हजार दिए और किसी तरह कश्मीर से भागकर दिल्ली पहुंचे. दिल्ली पहुंचने के बाद ये लोग अपने-अपने घर चले गए.
अवलोकन करें:--
कश्मीरी वेशभूषा में पत्थरबाजी का काम करवाया जाता था
बड़ौत कोतवाली पहुंचे पीड़ित युवक नसीम ने बताया कि फैक्ट्री मालिक और उनके साथ काम करने वाले कश्मीरी युवक उन पर दवाब बनाते थे कि एनकाउंटर शुरू हो गया है, सेना ने गांव को घेर लिया है. इसलिए, सेना का ध्यान भटकाने के लिए पथराव शुरू कर दो ओर देखते ही देखते चारों ओर से सेना के जवानों पर झुंडों में पत्थरबाजी शुरू हो जाती थी. पीड़ितों की माने तो उन्हें जबरन पत्थरबाजों के साथ भेजा जाता था और पथरबाजी करने के लिए उन्हें कश्मीरी वेशभूषा का कुर्ता पायजामा भी पहनाया जाता था, ताकि वे भी कश्मीरी लगे.
पीड़ितों से पूछताछ कर रही है पुलिस
पीड़ित नसीम ने बताया कि घर पहुंचने के बाद फैक्ट्री मालिक एजाज वाणी ने उसे फोन करके धमकाया भी. उसने फोन पर कहा कि तुमलोग मुझे नहीं जानते हो, अगर मैं चाहूं तो तुम लोगों को दिल्ली से ही उठवा सकता हूं. पीड़ित बागपत कोतवाली पहुंच कर पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई है. जी मीडिया पर यह खबर प्रमुखता से दिखाने के बाद यूपी पुलिस हरकत में आई. मेरठ जोन के ADG प्रशांत कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए बागपत और सहारनपुर पुलिस को मामले की जांच के आदेश दिए हैं. पुलिस फिलहाल पीड़ितों से पूछताछ कर रही है.
जनवरी महीने से कश्मीर में पत्थरबाजों की कैद में रहे बागपत और सहारनपुर जनपद के दर्जनों युवक आखिरकार छूटकर भाग निकलने में सफल रहे। कश्मीर से छूटकर घर पहुंचे पीड़ित युवकों ने बताया कि वे कश्मीर में सिलाई की फैक्ट्री में नौकरी करने गए थे, लेकिन फैक्ट्री मालिक ने कश्मीरियों की मदद से उन्हें बंधक बना लिया और उन्हें पत्थरबाजी करने की ट्रेनिंग देकर सेना के जवानों पर पत्थरबाजी करने को मजबूर किया। पीड़ितों का कहना है कि जब इन लोगों ने सेना के जवानों पर पत्थरबाजी से इंकार कर दिया तो इन्हें मारा-पीटा जाता था। क्या कश्मीर राज्यपाल उस आरोपी फैक्ट्री मालिक के विरुद्ध कार्यवाही करेंगे?
नेशनल कांफ्रेंस और अलगाववादी नेता अक्सर कहते हैं कि "ये पत्थरबाज देश विरोधी नहीं, बल्कि अपनी आज़ादी के लिए सडकों पर हैं। पत्थरबाजों के समर्थक नेता शायद नहीं जानते कि आज़ादी के दीवाने सीना ठोक कर सामने आते हैं, मुँह छिपाकर नहीं।
मुज़फ्फरनगर दंगे की फाइलों को खोलना होगा
मुजफ्फरनगर दंगे पर प्रकाशित रपट |
प्रकाशित रपट को सत्यापित करते तत्कालीन भाजपा नेता हुकुम सिंह |
इन्हे आज़ादी नहीं, पैसा प्यारा है, इसीलिए मुँह ढककर पत्थरबाज़ी कर रहे हैं, कोई मानवाधिकार सेना की हिमायत में नहीं आया, क्यों? |
बड़ौत कोतवाली थाना क्षेत्र के गुराना रोड पर रहने वाले युवक नसीम ने बताया कि वह इसी साल जनवरी महीने के आखिर में बालैनी थाना क्षेत्र के डोलचा गांव निवासी शमीम, ढिकाना गांव निवासी अंकित, सहारनपुर जनपद के नानौता निवासी मोहम्मद अजीम राव, नकुड़ निवासी बबलू और पंकज और अन्य युवकों के साथ कश्मीर के पुलवामा में लस्तीपुरा गए थे. वहां उन्हें डिवाइन इंडस्ट्रियल फर्म में सिलाई की नौकरी मिल गई थी. उसी फैक्ट्री में कश्मीर के भी कई युवक काम करते थे. फैक्ट्री मालिक एजाज वाणी उन पर पत्थरबाजी करने का दवाब बनाने लगा.
एसपी हायर सेकण्ड्री और विमेंस कॉलेज की छात्राएं भी इस संघर्ष में शामिल हो गयीं और जमकर उत्पात मचाया, किसने दिए इन्हे पत्थरबाज़ी के लिए पैसे ? |
कश्मीर में जब भी सेना के जवान किसी आतंकवादी का एनकाउंटर करते थे, तो आतंकवादी गांव में घुस जाते थे और किसी भी मकान में शरण ले लेते थे. उसके बाद स्थानीय लोग सेना के ध्यान को भटकाने के लिए उन पर पत्थरबाजी शुरू कर देते थे. युवकों ने बताया कि उनके साथ वहां पर मारपीट भी की जाती थी.
एक स्थानीय की मदद से भागने में हुए कामयाब
सेना पर जबरदस्ती पत्थरबाजी से तंग आकर ये लोग वहां से किसी तरह भाग निकलना चाहते थे. वहां से भागने के लिए इनलोगों ने वहां के ही एक स्थानीय शख्स से संपर्क किया. उसने कश्मीर से बाहर निकालने के लिए 10 हजार रुपए मांगे. इन्होंने 10 हजार दिए और किसी तरह कश्मीर से भागकर दिल्ली पहुंचे. दिल्ली पहुंचने के बाद ये लोग अपने-अपने घर चले गए.
अवलोकन करें:--
बड़ौत कोतवाली पहुंचे पीड़ित युवक नसीम ने बताया कि फैक्ट्री मालिक और उनके साथ काम करने वाले कश्मीरी युवक उन पर दवाब बनाते थे कि एनकाउंटर शुरू हो गया है, सेना ने गांव को घेर लिया है. इसलिए, सेना का ध्यान भटकाने के लिए पथराव शुरू कर दो ओर देखते ही देखते चारों ओर से सेना के जवानों पर झुंडों में पत्थरबाजी शुरू हो जाती थी. पीड़ितों की माने तो उन्हें जबरन पत्थरबाजों के साथ भेजा जाता था और पथरबाजी करने के लिए उन्हें कश्मीरी वेशभूषा का कुर्ता पायजामा भी पहनाया जाता था, ताकि वे भी कश्मीरी लगे.
पीड़ितों से पूछताछ कर रही है पुलिस
पीड़ित नसीम ने बताया कि घर पहुंचने के बाद फैक्ट्री मालिक एजाज वाणी ने उसे फोन करके धमकाया भी. उसने फोन पर कहा कि तुमलोग मुझे नहीं जानते हो, अगर मैं चाहूं तो तुम लोगों को दिल्ली से ही उठवा सकता हूं. पीड़ित बागपत कोतवाली पहुंच कर पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई है. जी मीडिया पर यह खबर प्रमुखता से दिखाने के बाद यूपी पुलिस हरकत में आई. मेरठ जोन के ADG प्रशांत कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए बागपत और सहारनपुर पुलिस को मामले की जांच के आदेश दिए हैं. पुलिस फिलहाल पीड़ितों से पूछताछ कर रही है.
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