नागपुर में होने वाले आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि वे इसका जवाब नागपुर में देंगे। उन्होंने कहा कि वे इस मामले पर अभी कुछ भी नहीं कहना चाहते हैं। बता दें कि प्रणब मुखर्जी संघ के शिक्षा वर्ग के 25 दिनों से चल रहे कार्यक्रम के समापन में हिस्सा लेंगे। 7 जून को होने वाले इस आयोजन के लिए आरएसएस की तरफ से न्योता भेजा गया था जिसे पूर्व राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया है।
कई लोगों ने इस बारे में पूछा
पूर्व राष्ट्रपति ने एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा, "मुझे कई पत्र आए और कई लोगों ने फोन किया, लेकिन मैंने किसी का जवाब नहीं दिया है। जो कुछ भी मुझे जो कहना है, मैं नागपुर में कहूंगा।'
कांग्रेस नेताओं ने उठाए थे सवाल
कांग्रेस नेता जय राम रमेश और सीके जाफर शरीफ ने प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखकर कार्यक्रम में जाने के फैसले पर फिर से विचार करने को कहा था। जयराम रमेश ने बताया कि उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति को लिखा कि उन जैसे विद्वान और सेक्युलर व्यक्ति को आरएसएस के साथ किसी तरह की नजदीकी नहीं दिखानी चाहिए। आरएसएस के कार्यक्रम में जाने का देश के सेकुलर माहौल पर बहुत गलत असर पड़ेगा।
कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने मंगलवार को ही कहा था, "कांग्रेस नेता होने के नाते प्रणब दा ने कई बार आरएसएस के बारे में बात की। उनकी नजर में आरएसएस से घटिया और गंदी संस्था देश में कोई नहीं है। उन्होंने संस्था के भ्रष्टाचार के बारे में बताया। उनका कहना था कि इसे देश से बाहर फेंकना चाहिए। आरएसएस अगर ऐसी विचारधारा के अतिथि को बुला रहा है, इसका मतलब वह अब उनके विचारों से सहमत हो गया है।"
दूसरी विचारधारा के लोगों से मिलने में कोई बुराई नहीं- भाजपा
वहीं कांग्रेस द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद भाजपा के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था, "आरएसएस ने प्रणब मुखर्जी को न्योता भेजा, उन्होंने इसे स्वीकार किया। यह व्यक्तिगत है। देश में कोई राजनीतिक अस्पृश्यता नहीं होनी चाहिए। हमें हर तरह की विचारधारा के लोगों से मिलना चाहिए। उन्हें सुनना चाहिए। इसमें कोई बुराई नहीं है। प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस का न्योता स्वीकार किया है, यह अच्छा फैसला है। इसमें किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। आरएसएस राष्ट्रवादी संगठन है, आईएसआईएस का नहीं।
इंदिरा गांधी ने भी की थी आरएसएस की तारीफ
राज्यसभा सांसद और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि प्रणब मुखर्जी रिटायर हो गए हैं, वे पहले कांग्रेस में रहे हैं, लेकिन क्या वे बदल नहीं सकते। ऐसा नहीं है। परिस्थितियां बदल जाती हैं। क्या जवाहर लाल नेहरू ने गणतंत्र दिवस में आरएसएस की एक टोली भेजने को नहीं कहा था? लाल बहादुर शास्त्री ने भी ऐसा किया था। मोरबी में बाढ़ और भूकंप में जो आरएसएस ने काम किया उसकी तारीफ इंदिरा गांधी ने की थी।
प्रमुख लोगों को मुख्य अतिथि बनाना हमारी परंपरा
आरएसएस के पदाधिकारी के मुताबिक, "हमारे यहां परंपरा है कि हम देश के ऐसे प्रमुख लोगों को कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बुलाते हैं, जिन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवा में बिताया हो। इसी के चलते पूर्व राष्ट्रपति को न्योता भेजा गया था। इसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।"
उन्होंने बताया कि 7 जून को होने वाले समापन सत्र में प्रणब मुखर्जी के साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत भी होंगे। 25 दिनों के इस कार्यक्रम में 700 स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया है।
कई लोगों ने इस बारे में पूछा
पूर्व राष्ट्रपति ने एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा, "मुझे कई पत्र आए और कई लोगों ने फोन किया, लेकिन मैंने किसी का जवाब नहीं दिया है। जो कुछ भी मुझे जो कहना है, मैं नागपुर में कहूंगा।'
कांग्रेस नेताओं ने उठाए थे सवाल
कांग्रेस नेता जय राम रमेश और सीके जाफर शरीफ ने प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखकर कार्यक्रम में जाने के फैसले पर फिर से विचार करने को कहा था। जयराम रमेश ने बताया कि उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति को लिखा कि उन जैसे विद्वान और सेक्युलर व्यक्ति को आरएसएस के साथ किसी तरह की नजदीकी नहीं दिखानी चाहिए। आरएसएस के कार्यक्रम में जाने का देश के सेकुलर माहौल पर बहुत गलत असर पड़ेगा।
कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने मंगलवार को ही कहा था, "कांग्रेस नेता होने के नाते प्रणब दा ने कई बार आरएसएस के बारे में बात की। उनकी नजर में आरएसएस से घटिया और गंदी संस्था देश में कोई नहीं है। उन्होंने संस्था के भ्रष्टाचार के बारे में बताया। उनका कहना था कि इसे देश से बाहर फेंकना चाहिए। आरएसएस अगर ऐसी विचारधारा के अतिथि को बुला रहा है, इसका मतलब वह अब उनके विचारों से सहमत हो गया है।"
दूसरी विचारधारा के लोगों से मिलने में कोई बुराई नहीं- भाजपा
वहीं कांग्रेस द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद भाजपा के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था, "आरएसएस ने प्रणब मुखर्जी को न्योता भेजा, उन्होंने इसे स्वीकार किया। यह व्यक्तिगत है। देश में कोई राजनीतिक अस्पृश्यता नहीं होनी चाहिए। हमें हर तरह की विचारधारा के लोगों से मिलना चाहिए। उन्हें सुनना चाहिए। इसमें कोई बुराई नहीं है। प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस का न्योता स्वीकार किया है, यह अच्छा फैसला है। इसमें किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। आरएसएस राष्ट्रवादी संगठन है, आईएसआईएस का नहीं।
इंदिरा गांधी ने भी की थी आरएसएस की तारीफ
राज्यसभा सांसद और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि प्रणब मुखर्जी रिटायर हो गए हैं, वे पहले कांग्रेस में रहे हैं, लेकिन क्या वे बदल नहीं सकते। ऐसा नहीं है। परिस्थितियां बदल जाती हैं। क्या जवाहर लाल नेहरू ने गणतंत्र दिवस में आरएसएस की एक टोली भेजने को नहीं कहा था? लाल बहादुर शास्त्री ने भी ऐसा किया था। मोरबी में बाढ़ और भूकंप में जो आरएसएस ने काम किया उसकी तारीफ इंदिरा गांधी ने की थी।
प्रमुख लोगों को मुख्य अतिथि बनाना हमारी परंपरा
आरएसएस के पदाधिकारी के मुताबिक, "हमारे यहां परंपरा है कि हम देश के ऐसे प्रमुख लोगों को कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बुलाते हैं, जिन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवा में बिताया हो। इसी के चलते पूर्व राष्ट्रपति को न्योता भेजा गया था। इसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।"
उन्होंने बताया कि 7 जून को होने वाले समापन सत्र में प्रणब मुखर्जी के साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत भी होंगे। 25 दिनों के इस कार्यक्रम में 700 स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया है।
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