गोवा और दमन के आर्कबिशप फादर फिलिप नेरी फेराओ के ईसाइयों को लिखे एक पत्र पर विवाद शुरू हो गया है। इसमें उन्होंने कहा है कि संविधान खतरे में है। इस वक्त ज्यादातर लोग असुरक्षा में जी रहे हैं। फिलिप नेरी फेराओ ने लोगों से संविधान को जानने और धर्मनिरपेक्षता, बोलने की आजादी और धर्म की आजादी जैसे मूल्यों को बचाने की अपील की है। बता दें कि 15 दिन पहले दिल्ली के आर्कबिशप अनिल काउटो ने भारत में धर्मनिरपेक्षता को खतरे में बताया था।
मानवाधिकार खतरे में, हम पर संस्कृति थोपी जा रही
पत्र में आर्कबिशप ने लिखा, “चुनाव नजदीक आ रहे हैं ऐसे में हमें संविधान को समझने का प्रयास करना होगा। पिछले कुछ समय में देश में एक नया दौर शुरू हुआ है जिसमें हम क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कैसे रहते हैं या कैसे पूजा करते हैं ये सब तय किया जा रहा है। इससे मानवाधिकार खतरे में है औैर लोकतंत्र पर भी संकट पैदा हो गया है।”
विकास के नाम पर गरीबों के अधिकार कुचले जा रहे
आर्कबिशप ने पत्र में आगे कहा कि अलग-अलग अल्पसंख्यक अपनी सुरक्षा को लेकर डरे हैं। लोगों को विकास के नाम पर उनके घरों और जमीनों से बेदखल किया जा रहा है। विकास का पहला शिकार गरीब होते हैं। उनके अधिकारों को कुचलना आसान है क्योंकि उनके लिए आवाज उठाने वाले बेहद कम हैं।
आर्कबिशप ने दी सफाई, कहा- जबरन बयानों का मुद्दा बनाया गया
गोवा के आर्कबिशप के सचिव ने इस पर सफाई पेश की है। उन्होंने कहा, “हम हर साल पत्र प्रकाशित करते हैं। इस बार किसी तरह एक-दो बयानों को मुद्दा बनाया गया। पत्र हमारी वेबसाइट पर है और सभी को इसे पढ़ना चाहिए ताकि पता चल सके कि इसे किस संदर्भ में लिखा गया है।”
अवलोकन करें:--
एक महीने पहले दिल्ली के आर्कबिशप ने जारी किया था विवादित पत्र
बता दें कि दिल्ली के आर्क बिशप अनिल काउटो ने भी 15 दिन पहले पादरियों के लिए पत्र जारी किया था। इसमें देश की राजनीतिक स्थिति को अशांत बताते हुए लिखा था, ‘‘मौजूदा हालात में लोकतांत्रिक सिद्धांतों और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा पैदा हो गया है। देश और राजनेताओं के लिए प्रार्थना करना हमारी पवित्र परंपरा है। लोकसभा चुनावों को देखते हुए ये बेहद महत्वपूर्ण है।” 8 मई को लिखे गए इस पत्र में निर्देश दिए गए थे कि हर रविवार को सामूहिक प्रार्थना सभा में इसे पढ़ा जाए।
पत्र में ईसाई समुदाय के लोगों को हर शुक्रवार को एक घंटे विशेष प्रार्थना और उपवास रखने के निर्देश दिए गए थे। इसमें लिखा गया कि देश में शांति, समानता और स्वतंत्रता के लिए ये जरूरी है। अगले साल चुनाव होने हैं, ऐसे में हमें प्रार्थना अभियान चलाना चाहिए। हमारे धर्म संस्थापकों और संविधान के मुताबिक समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे के मूल्य हमेशा ऊंचे रहने चाहिए।
हकीकत में चर्चों को संविधान खतरे में नहीं बल्कि भारत में उनके मंसूबे पुरे नहीं होने के कारण खतरा दिख रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते पिछली सरकार के ही कार्यकाल में लिखा था कि दिल्ली के रोहिणी के एक होटल में गरीब, दलित और अन्य हिन्दुओं को ईसाई बनाया जा रहा था,जिसका हिन्दू संगठनों द्वारा विरोध दर्ज़ करने वालों को प्रताड़ित किया जाता था, लेकिन केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के ही साथ दिल्ली में ईसाईओं के इस काम पर अपने आप ही विराम लग गया। अब जिन हिन्दू विरोधियों के मंसूबे पुरे नहीं हो रहे, उन्हें संविधान में खतरा और असुरक्षा की भावना होना स्वाभाविक ही है।
मानवाधिकार खतरे में, हम पर संस्कृति थोपी जा रही
पत्र में आर्कबिशप ने लिखा, “चुनाव नजदीक आ रहे हैं ऐसे में हमें संविधान को समझने का प्रयास करना होगा। पिछले कुछ समय में देश में एक नया दौर शुरू हुआ है जिसमें हम क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कैसे रहते हैं या कैसे पूजा करते हैं ये सब तय किया जा रहा है। इससे मानवाधिकार खतरे में है औैर लोकतंत्र पर भी संकट पैदा हो गया है।”
विकास के नाम पर गरीबों के अधिकार कुचले जा रहे
आर्कबिशप ने पत्र में आगे कहा कि अलग-अलग अल्पसंख्यक अपनी सुरक्षा को लेकर डरे हैं। लोगों को विकास के नाम पर उनके घरों और जमीनों से बेदखल किया जा रहा है। विकास का पहला शिकार गरीब होते हैं। उनके अधिकारों को कुचलना आसान है क्योंकि उनके लिए आवाज उठाने वाले बेहद कम हैं।
आर्कबिशप ने दी सफाई, कहा- जबरन बयानों का मुद्दा बनाया गया
गोवा के आर्कबिशप के सचिव ने इस पर सफाई पेश की है। उन्होंने कहा, “हम हर साल पत्र प्रकाशित करते हैं। इस बार किसी तरह एक-दो बयानों को मुद्दा बनाया गया। पत्र हमारी वेबसाइट पर है और सभी को इसे पढ़ना चाहिए ताकि पता चल सके कि इसे किस संदर्भ में लिखा गया है।”
अवलोकन करें:--
बता दें कि दिल्ली के आर्क बिशप अनिल काउटो ने भी 15 दिन पहले पादरियों के लिए पत्र जारी किया था। इसमें देश की राजनीतिक स्थिति को अशांत बताते हुए लिखा था, ‘‘मौजूदा हालात में लोकतांत्रिक सिद्धांतों और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा पैदा हो गया है। देश और राजनेताओं के लिए प्रार्थना करना हमारी पवित्र परंपरा है। लोकसभा चुनावों को देखते हुए ये बेहद महत्वपूर्ण है।” 8 मई को लिखे गए इस पत्र में निर्देश दिए गए थे कि हर रविवार को सामूहिक प्रार्थना सभा में इसे पढ़ा जाए।
पत्र में ईसाई समुदाय के लोगों को हर शुक्रवार को एक घंटे विशेष प्रार्थना और उपवास रखने के निर्देश दिए गए थे। इसमें लिखा गया कि देश में शांति, समानता और स्वतंत्रता के लिए ये जरूरी है। अगले साल चुनाव होने हैं, ऐसे में हमें प्रार्थना अभियान चलाना चाहिए। हमारे धर्म संस्थापकों और संविधान के मुताबिक समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे के मूल्य हमेशा ऊंचे रहने चाहिए।
हकीकत में चर्चों को संविधान खतरे में नहीं बल्कि भारत में उनके मंसूबे पुरे नहीं होने के कारण खतरा दिख रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते पिछली सरकार के ही कार्यकाल में लिखा था कि दिल्ली के रोहिणी के एक होटल में गरीब, दलित और अन्य हिन्दुओं को ईसाई बनाया जा रहा था,जिसका हिन्दू संगठनों द्वारा विरोध दर्ज़ करने वालों को प्रताड़ित किया जाता था, लेकिन केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के ही साथ दिल्ली में ईसाईओं के इस काम पर अपने आप ही विराम लग गया। अब जिन हिन्दू विरोधियों के मंसूबे पुरे नहीं हो रहे, उन्हें संविधान में खतरा और असुरक्षा की भावना होना स्वाभाविक ही है।
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