आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
देश की 4 लोकसभा सीटों और 10 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आए, 14 सीटों में एनडीए और महागठबंधन के बीच उपचुनाव का स्कोरकार्ड 3-11 का रहा। क्या 2019 के आम चुनावों की ओर बढ़ रहे राजनीतिक दलों के लिए ये नतीजे काफी दूरगामी असर डालने वाले हैं?
1. जहां बीजेपी के लिए उपचुनाव के नतीजे बड़ा झटका माने जा रहे हैं वहीं विपक्षी महागठबंधन के प्रयोग की सफलता की कहानी भी बयान करने वाले रहे। खासकर उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के बोल्ड सियासी फैसले ने साफ कर दिया कि बीजेपी के चाणक्य अमित शाह के लिए 2019 की जंग यूपी में 2014 जितनी आसान नहीं रहने वाली।
2. इस जीत का श्रेय दिया जाना चाहिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती को. जिन्होंने अपनी साझी रणनीति से पहले गोरखपुर-फूलपुर और अब कैराना-नूरपुर में बीजेपी को मात देकर तमाम दलों को मोदी मैजिक को मात देने का अचूक फॉर्मूला दे दिया।
3. अब मोदी मैजिक की काट विपक्षी दलों के पास है और वो है महागठबंधन का फार्मूला। जो पहले बिहार में सफल रही थी और अब यूपी में हर उपचुनाव में कामयाब होती जा रही है।
4. ममता बनर्जी का वन-टू-वन फॉर्मूला विपक्ष के लिए ब्रह्मास्त्र है। यानी अगर बीजेपी के सियासी समीकरणों को मात देना है तो छोटे-बड़े सभी दलों को साथ आना पड़ेगा। इसमें सियासी अहम रुकावट नहीं बननी चाहिए।जहां जो जीत सकता है उसे जीतने का मौका और समर्थन देना ही होगा। जैसे गोरखपुर-फूलपुर में बसपा ने सपा को मौका दिया। कैराना में आरएलडी को और नूरपुर में सपा को सभी विपक्षी दलों ने समर्थन किया और 100 फीसदी जीत मुमकिन हो पाई।
मुश्किलें
देश की 4 लोकसभा सीटों और 10 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आए, 14 सीटों में एनडीए और महागठबंधन के बीच उपचुनाव का स्कोरकार्ड 3-11 का रहा। क्या 2019 के आम चुनावों की ओर बढ़ रहे राजनीतिक दलों के लिए ये नतीजे काफी दूरगामी असर डालने वाले हैं?
1. जहां बीजेपी के लिए उपचुनाव के नतीजे बड़ा झटका माने जा रहे हैं वहीं विपक्षी महागठबंधन के प्रयोग की सफलता की कहानी भी बयान करने वाले रहे। खासकर उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के बोल्ड सियासी फैसले ने साफ कर दिया कि बीजेपी के चाणक्य अमित शाह के लिए 2019 की जंग यूपी में 2014 जितनी आसान नहीं रहने वाली।
2. इस जीत का श्रेय दिया जाना चाहिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती को. जिन्होंने अपनी साझी रणनीति से पहले गोरखपुर-फूलपुर और अब कैराना-नूरपुर में बीजेपी को मात देकर तमाम दलों को मोदी मैजिक को मात देने का अचूक फॉर्मूला दे दिया।
3. अब मोदी मैजिक की काट विपक्षी दलों के पास है और वो है महागठबंधन का फार्मूला। जो पहले बिहार में सफल रही थी और अब यूपी में हर उपचुनाव में कामयाब होती जा रही है।
4. ममता बनर्जी का वन-टू-वन फॉर्मूला विपक्ष के लिए ब्रह्मास्त्र है। यानी अगर बीजेपी के सियासी समीकरणों को मात देना है तो छोटे-बड़े सभी दलों को साथ आना पड़ेगा। इसमें सियासी अहम रुकावट नहीं बननी चाहिए।जहां जो जीत सकता है उसे जीतने का मौका और समर्थन देना ही होगा। जैसे गोरखपुर-फूलपुर में बसपा ने सपा को मौका दिया। कैराना में आरएलडी को और नूरपुर में सपा को सभी विपक्षी दलों ने समर्थन किया और 100 फीसदी जीत मुमकिन हो पाई।
5. ये भी कि बीजेपी के लिए चुनावी लड़ाई अब 2014 जैसी आसान नहीं है। केंद्र में बीजेपी की सरकार के 4 साल पूरे हो चुके हैं और रोजगार-किसानों के मुद्दों समेत तमाम मुद्दों पर एंटी-इंकमबेंसी का सामना अब बीजेपी को करना होगा। अब सिर्फ ब्रांड मोदी जीत दिलाने के लिए काफी नहीं है।
6. केंद्र की मोदी सरकार को जनता के बीच असर दिखाने वाले ठोस कदम उठाने होंगे। किसानों, युवाओं के रोजगार के मुद्दे, आर्थिक गड़बड़ियों को रोक पाने में विफलता आदि ऐसे तमाम मुद्दे हैं जो विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका दे रहे हैं इन पर ठोस कदम उठाने होंगे। इसके अलावा राम मंदिर जैसे बीजेपी के कोर मुद्दों पर भी कोई ठोस पहल नहीं होना बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ा रही है।
यदि ममता के वन-टू-वन फार्मूले पर अमल किया जाता है, निश्चित रूप से कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडला सकते हैं, जिस कारण कांग्रेस के प्रमुख विपक्षी दल नेता का पद भी खटाई में पड़ सकता हैं, और ऐसा होने की स्थिति में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों में विशेष अंतर नहीं रह पायेगा। अपने आपको इस स्थिति में लाने की बजाए कांग्रेस का इस गठबंधन से दूरी बनाये रखना ही हितकर होगा।
भाजपा की बढ़ती यदि ममता के वन-टू-वन फार्मूले पर अमल किया जाता है, निश्चित रूप से कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडला सकते हैं, जिस कारण कांग्रेस के प्रमुख विपक्षी दल नेता का पद भी खटाई में पड़ सकता हैं, और ऐसा होने की स्थिति में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों में विशेष अंतर नहीं रह पायेगा। अपने आपको इस स्थिति में लाने की बजाए कांग्रेस का इस गठबंधन से दूरी बनाये रखना ही हितकर होगा।
मुश्किलें
भाजपा के लिए चिंता का विषय है कि ना केवल उसकी सीटें बल्कि उसका वोट शेयर भी घटता जा रहा है। साल 2014 के बाद उपचुनाव के नतीजों का विश्लेषण करें तो बीजेपी जीती हुई सीटें ही नहीं हार रही है, बल्कि उसका वोट शेयर भी घट रहा है।
साल 2014 में भाजपा को कैराना से 50.6 प्रतिशत वोट मिले थे। मगर वह इसे दोहरा पाने में कामयाब नहीं रही। इससे पहले भी गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों पर पार्टी के खिलाफ बनी विपक्षी एकता की वजह से भाजपा के वोट कम हुए थे और वह 46.5 प्रतिशत वोटों पर सिमटकर रह गई थी। भाजपा के वोट शेयर में यह कमी कैसे आई यह पता लगाना काफी मुश्किल है।
महाराष्ट्र की दो सीटों पालघर और भंडारा-गोंदिया में हुए चुनावों में भाजपा के वोट शेयर में 9 से 23 प्रतिशत की कमी आई है। पार्टी के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद 27 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं जिनमें से 24 पर भाजपा सीधे तौर पर लड़ी थी लेकिन इसके बावजूद केवल 5 सीटें ही जीत पाई। बाकी की सीटें विपक्ष के खाते में गई हैं।
2014 के दौरान भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ा। हालांकि अब दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे की विरोधी हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 2014 लोकसभा चुनाव के मुकाबले गोंदिया-भंडारा में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की वोट शेयरिंग 8 प्रतिशत बढ़ गई है। पालघर में इस गठबंधन ने अपनी मौजूदगी दिखाई है। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा, शिवसेना और बहुजन आधाड़ी दल (बीवीए) के बीच था।
बाकी बचे हुए लोकसभा उपचुनाव की बात करें तो नगालैंड में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है। यहां भाजपा और एनडीपीपी पीडीए के साथ गठबंधन में हैं। वहीं कांग्रेस ने एनपीएफ उम्मीदवार को समर्थन दिया था। यदि भाजपा के वोट शेयर का विश्लेषण किया जाए तो 10 उपचुनाव के दौरान भाजपा का वोट शेयर घटा है। हालांकि महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है। यहां पार्टी को दूसरा स्थान मिला है।
हालांकि यूपी के नूरपुर विधानसभा सीट पर हार के बावजूद बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा। नूरपुर में पिछले चुनाव में बीजेपी को 39 फीसदी वोट मिले थे और इस बार 47.2 फीसदी।
2014 में कैराना से भाजपा सांसद बने हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई सीट पर उपचुनाव में भाजपा ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया था। गठबंधन की उम्मीदवार रालोद की तबस्सुम बेगम ने भाजपा की मृगांका सिंह को 44618 मतों से पराजित किया। तबस्सुम को 481182 मत मिले जबकि भाजपा की मृगांका सिंह को 436564 मत मिले।
निर्दलीय रवींद्र कुमार को 3553, संजीव को 2760, यजपाल सिंह राठी को 1567, रणधीर सिंह को 1408, मोहम्मद सलीम को 1043, सेठपाल को 896, लोकदल के कंवर हसन को 624, रामशरण को 1260, बहुजन मुक्ति पार्टी के इंद्रजीत को 2388, जय हिंद जय भारत पार्टी की कुमारी प्रीति कश्यप को 1108 और नोटा को 4389 मत मिले।
विधान परिषद में भी रालोद के एकमात्र सदस्य चौधरी मुश्ताक का कार्यकाल 5 मई को समाप्त हो गया। ऐसे में रालोद का विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा और राज्यसभा किसी भी सदन में कोई सदस्य नहीं था। तबस्सुम की जीत के साथ ही रालोद का लोकसभा में खाता खुल गया है।
भाजपा विधायक लोकेंद्र सिंह की सड़क हादसे में निधन से खाली हुई नूरपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा ने स्व. लोकेंद्र सिंह की पत्नी अवनी सिंह को उम्मीदवार बनाया था। अवनी सिंह को सपा के नइमुल हसन ने 5,662 मतों से पराजित किया। नइमुल हसन को 94,875 मत प्राप्त हुए जबकि अवनी सिंह को 89213 वोट मिले।
लोकदल के गोहर इकबाल को 1197, राष्ट्रीय जनहित संघर्ष पार्टी के जहीर आलम को 687, भारतीय मोमीन फ्रंट की माया को 161, उत्तर प्रदेश रिपब्लिकन पार्टी के रामरतन को 139, निर्दलीय प्रबुद्ध कुमार को 168, अमित कुमार सिंह को 391, बेगराज सिंह को 341 और राजपाल सिंह को 799 मत प्राप्त हुए। नोटा को 1012 मत मिले और 18 वोट खारिज हुए।
विधानसभा चुनाव 2017 में नूरपुर में त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के लोकेंद्र सिंह ने 78 हजार मत प्राप्त कर चुनाव जीता था। उपचुनाव में भाजपा और सपा के बीच सीधे मुकाबले में भाजपा की अवनी सिंह को 2017 चुनाव की तुलना में करीब 11 हजार मत अधिक मिले, लेकिन चुनावी बाजी सपा ने जीत ली।
Comments