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भारत में दिखना शुरू हो गया प्रभाव : मोदी का इजराइल दौरा

नरेन्द्र मोदी इजराइल जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री है।
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पीएम मोदी का ये दौरा कई वजहों से महत्वपूर्ण है। मोदी ने अपनी यात्रा से एक दिन पहले इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अपना दोस्त बताते हुए कहा कि वो यात्रा को लेकर काफी आशावान हैं।
मोदी की इजराइल यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सैन्य, कृषि, जल और अंतरिक्ष तकनीक आदि मसलों पर बातचीत होने की संभावना है। 
पीएम नरेंद्र मोदी की ये इजराइल यात्रा इन वजहों से अहम मानी जा रही है 
1 पहले भारतीय प्रधानमंत्री-
नरेन्द्र मोदी इजराइल जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री है। साल 1948 में इजराइल का गठन हुआ और 1949 में संयुक्त राष्ट्र ने उसे  मान्यता दी।
इसके बाद 1950 में भारत ने भी इजराइल को स्वतंत्र देश की मान्यता दी। लेकिन आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने वहां का दौरा नहीं किया था। 
2 वैश्विक राजनीति में असर --
पीएम के अमेरिकी दौरे के बाद इजराइली अखबार ने द मार्कर ने उन्हें दुनिया का सबसे अहम प्रधानमंत्री बताया था। जाहिर है कि इजराइल मोदी को वैश्विक नेता मानता है। 
इजराइल और फिलिस्तीन के बीच बढ़ते टकराव में भारत इजराइल के लिए मददगार साबित हो सकता है।  
3 कृषि क्षेत्र में हो सकते है समझौते-
हमारे देश को आज भी कृषि प्रधान देश माना जाता है। इजराइल कृषि तकनीकी में बहुत आगे है। अगर इया मुद्दे पर इजराइल के साथ समझोता होता है तो भारत के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा।
4 रक्षा सहयोग-
आप को बता दें  कि इजराइल रक्षा के में दुनिया के सबसे अग्रणी देशों में से एक है। भारत 2012 से 2016 के करीब 41 प्रतिशत हथियार इजराइल से ही खरीदे है। 
दुनिया में अमेरिका और रूस के बाद इजराइल तीसरा ऐसा देश है जिससे भारत हथियार खरीदते है। 1962 और 1965 के चीन युद्ध और 1971 में पाक के साथ हुए युद्ध में भी इजराइल ने भारत की मदद की थी। 
5  जल प्रबंधन समझोता- 
जल प्रबंधन भारत के लिए बड़ी समस्या बना ह हुआ है। इजराइल के पास जलप्रबंधन की काफी विकसित तकनीकि है इसलिए इस क्षेत्र में वो भारत के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। 
हमारी केंद्रीय कैबिनेट ने 28 जून 2017 को इजराइल के साथ “नेशनल कैंपेन फॉर वाटर कंजरवेशन इन इंडिया” पर एमओयू साइन किया है।
कांग्रेस द्वारा खिलाफत आंदोलन से शुरू हुए ‘‘मुस्लिम तुष्टीकरण युग’’ का अंततः मोदीजी के इजरायल दौरे से खात्मा हुआ !
Image may contain: text1919 से 1924 तक चले खिलाफत आंदोलन में भारत के मुसलमानों का समर्थन कर काँग्रेस और गाँधीजी ने जो मुस्लिम तुष्टीकरण की शुरुआत की, उसकी परिणिति भारत के बंटवारे के रुप में हुई। मुस्लिम तुष्टीकरण की इतनी बड़ी कीमत चुकाने के बाद भी कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल आजतक उसी नीति पर चलते रहे, भले ही उसकी वजह से कश्मीर के हालात खौफनाक हुए हो या केरल, बंगाल और देश के कई हिस्सों में हिन्दुओं की दुर्दशा हुई हो। वोट बैंक के चक्कर में इन पार्टियों ने देश की सुरक्षा तक की परवाह नही की। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है इजराइल जैसे देश के साथ अछूतों वाला व्यवहार। मोदीजी की इजरायल यात्रा कोई सामान्य विदेश यात्रा नही है। ये भारत से मुस्लिम तुष्टीकरण के खात्मे का शंखनाद भी है। इस दौरे से देश के अंदर और देश के बाहर कितने लोगों और देशों को पीड़ा होगी सिर्फ उसी का आकलन करते रहिये, यही पीडा इस दौरे की सफलता कहलायेगी।
खिलाफत आंदोलन’ :
खिलाफत आन्दोलन दूर देश तुर्की के खलीफा को गद्दी से हटाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। असहयोग आन्दोलन भी खिलाफत आन्दोलन की सफलता के लिए चलाया गया आन्दोलन था। आज भी अधिकांश भारतीयों को यही पता है कि असहयोग आन्दोलन स्वतंत्रता प्राप्ति को चलाया गया कांग्रेस का प्रथम आन्दोलन था, किन्तु सत्य यही है कि इस आन्दोलन का कोई भी राष्ट्रीय लक्ष्य नहीं था।
प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की की हार के पश्चात अंग्रेजों ने वहां के खलीफा को गद्दी से पदच्युत कर दिया था। खिलाफत़ व असहयोग आंदोलनों का लक्ष्य था- तुर्की के सुलतान की गद्दी वापिस दिलाना। यहाँ एक हास्यप्रद बात और है कि तुर्की की जनता ने स्वयं ही कमाल अता तुर्क के नेतृत्व में तुर्की के खलीफा को देश निकाला दे दिया था। भारत में मोहम्मद अली जोहर व शोकत अली जोहर 2 भाई खिलाफत का नेतृत्व कर रहे थे। गाँधी ने खिलाफत के सहयोग के लिए ही असहयोग आन्दोलन की घोषणा कर डाली। जब कुछ राष्ट्रवादी कांग्रेसियों ने इसका विरोध किया तो गाँधी ने यहाँ तक कह डाला, जो खिलाफत का विरोधी है, वह कांग्रेस का भी शत्रु है।
इतिहास साक्षी है कि जब खिलाफत आन्दोलन फेल हो गया, तो मुसलमानों ने इसका सारा गुस्सा हिदू जनता पर निकाला। मुसलमान जहाँ कहीं भी संख्या में अधिक थे, हिन्दू समाज पर हमला करने लगे। हजारों हिन्दू ओरतों से बलात्कार हुए, लाखों की संख्या में तलवार के बल पर मुसलमान बना दिए गए। सबसे भयंकर स्थिति केरल में मालाबार में हुई, जो इतिहास में ‘मोपला कांड’ के नाम से जानी जाती है। मोपला कांड में ही अकेले 20 हजार हिन्दुओं को काट डाला गया, 20 हजार से ज्यादा को मुसलमान बना डाला, 10 हजार से अधिक हिदू ओरतों के बलात्कार हुए और यह सब हुआ गाँधी के असहयोग आन्दोलन के कारण।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि 1920 तक तिलक की जिस कांग्रेस का लक्ष्य ‘स्वराज्य’ प्राप्ति था, गाँधी ने अचानक उसे बदल कर एक दूर देश तुर्की के खलीफा के सहयोग और मुस्लिम आन्दोलन में बदल डाला, जिसे वहां की जनता ने भी लात मार कर देश निकाला दिया था। दूर देश में मुस्लिम राज्य की स्थापना के लिए स्वराज्य की मांग को कांग्रेस द्वारा ठुकराना तथा इस आन्दोलन को चलाना, राष्ट्रवादी था या राष्ट्रविरोधी, भारतीय इतिहास में इस सत्य का उद्घाटन होना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने का दम्भ भरने वाली कांग्रेस लगातार भारत को इस झूठ भरे इतिहास के साथ गहन अन्धकार की ओर धकेलती रहेगी।(खिलाफत आंदोलन गूगल की मदद से)
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जून 4 को इजरायल दौरे के लिए रवाना हो गए हैं। मोदी इजरायल का दौरा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं।
VIDEO: वाजपेयी ने किया था इजराइली PM को भारत आमंत्रित, हुए थे ये परिणाम
सन 2003 में भी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए इजरायली पीएम एरियल शैरॉन को भारत आमंत्रित किया था। लेकिन विपक्षी पार्टियों ने इस ऐतिहासिक कदम के लिए वाजपेयी सरकार का विरोध किया था।
खास बात ये है कि उस वक्त से लेकर अब तक किसी इजरायली पीएम ने पहली बार भारत का दौरा किया था। इसके साथ ही पीएम मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के बीच राजनीतिक रिश्तों के 25 साल भी पूरे हो रहे हैं।

भारत-इजरायल संबंध

* 1990 के दशक में भारत-इजरायल के साथ राजनयिक संबंध शुरू हुए।
* 1990 में ही वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में इजराइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरॉन को भारत दौरे के लिए आमंत्रित किया गया।
* 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने इजरायल के साथ राजनयिक संबंधों की नींव रखी थी।
* इसके बाद राष्ट्रपति एजर विजमान ने जनवरी 1997 में भारत का दौरा किया था। 
* वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने 2000 में इजरायल की यात्रा की थी।
* इस यात्रा के बाद 2003 में पहली बार तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री एरियल शेरॉन भारत के दौरे पर आए थे।
* इसके बाद अक्टूबर 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इजराइल का दौरा करने वाले भारत के पहले राष्ट्रपति बने। 
* इसके बाद नवंबर 2016 में इजराइल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन भारत का दौरा किया। 
* मोदी सरकार के सत्ता में आते ही राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और गृह मंत्री राजनाथ सिंह इजरायल का दौरा कर चुके हैं।

* दोनों देशों के बीच मिलिटरी एक्सपोर्ट्स, द्विपक्षीय ट्रेड 4.52 बिलियन का है।
मोदी का इजरायल दौरा क्यों है अहम

इजरायल के विदेश मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल युवल घुतेन ने बताया, 'पीएम मोदी की यात्रा दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों के लिए अहम है। हम इस यात्रा को लेकर काफी उत्साहित हैं। इस दौरे में कई समझौते हो सकते हैं। आप इस यात्रा से कुछ सरप्राइज की भी उम्मीद कर सकते हैं।' उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं की बैठकों के बारे में उच्चस्तरीय भारतीय दल ने चर्चा कर ली है। बता दें कि भारत और इजरायल के बीच कूटनीतिक रिश्तों के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में पीएम मोदी का यह दौरा हो रहा है।
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का "सबका साथ, सबका विकास" मूलमंत्र में जो गहराई है, उसे धूमिल करने का समस्त छद्दम समाजवादी और धर्म-निरपेक्ष नेता दिन-रात व्यस्त है। साम्प्रदायिकता फ़ैलाने का कोई मौका नहीं चूक रहे। वास्तव में मोदी के मूलमन्त्र का उद्देश्य सभी के हितों की रक्षा करना है, न कि अपनी कुर्सी खातिर केवल एक ही मजहब को सिरमाथे बैठाना। 
भारत में दिखना शुरू हो गया प्रभाव 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजरायल में रहने और फिलीस्तीन ना जाने को लेकर एक टीवी डिबेट शो में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें शो की एंकर के सामने हाथ जोड़कर कहना पड़ गया कि आप प्लीज मुझे अपने चैनल पर मत बुलाया करें। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजरायल में रहने और फिलीस्तीन ना जाने को लेकर एक टीवी डिबेट शो में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें शो की एंकर के सामने हाथ जोड़कर कहना पड़ गया कि आप प्लीज मेरी खुराक बंद कर दीजिए और मुझे अपने चैनल पर मत बुलाया करें। मोदी इजरायल के दौरे पर हैं लेकिन उनके कार्यक्रम में फिलीस्तान का दौरा नहीं है। इसी मुद्दे पर हिंदी न्यूज चैनल आज तक ने एक डिबेट शो का आयोजन किया था। इस टीवी डिबेट में बीजेपी का पक्ष रखने पार्टी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी मौजूद थे तो पीएम के दौरे से फिलीस्तान का नाम गायब होने की मुखालफत करने AIMIM चीफ और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी डिबेट में हिस्सा ले रहे थे।
ओवैसी ने पीएम के इजरायली दौरे को लेकर कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई भारतीय प्रतिनिधि दल इजरायल जा रहा है और बिना फिलीस्तान गए लौट आएगा। ओवैसी ने कहा कि भारत की नीति कभी इस तरह से नहीं रही है। पीएम मोदी की इस हरकत से इजरायल फिलीस्तीन को और ज्यादा दबाएगा। ओवैसी की बातें सुनकर शो की एंकरिंग कर रहीं अंजना ओम कश्यप ने कहा कि आपकी बातों से लगता है कि पीएम के इस दौरे से आपको बैठे बिठाए बिना बात के राजनीतिक खुराक मिल गई है।



@asadowaisi-हमारी विदेशनीति का मूल बिंदु था कि जब भी हमारे नेता इजरायल जाते थे वे फिलीस्तीन भी जाते थे. वे इस बार नहीं गए





@asadowaisi-फिलीस्तीन का मुद्दा एक धर्म का मसला नहीं है, फिलीस्तीन एक पीड़ित देश रहा है
Live: http://bit.ly/at_liveTV 

शो की एंकर की इस बात से खफा होकर असदुद्दीन ओवैसी ने उनके आगे हाथ जोड़ लिये। हाथ जोड़ते हुए ओवैसी ने कहा- मैडम आप मुझे अपने टीवी चैनल पर मत मुलाया कीजिए, मेरी खुराक बंद कर दीजिए। मैं एक खाते पीते घर का हूं..यहां आपने बुलाया है इसलिए आया हूं, आप नहीं बुलाओगी मैं नहीं आऊंगा। लेकिन इतना कहने के बाद भी ओवैसी अपनी बात पर कायम रहे और फिलीस्तीन ना जाने के लेकर मोदी सरकार की मुखालफत करते रहे।
मोदी इजरायल के दौरे पर हैं लेकिन उनके कार्यक्रम में फिलीस्तान का दौरा नहीं है। इसी मुद्दे पर हिंदी न्यूज चैनल आज तक ने एक डिबेट शो का आयोजन किया था। इस टीवी डिबेट में बीजेपी का पक्ष रखने पार्टी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी मौजूद थे तो पीएम के दौरे से फिलीस्तान का नाम गायब होने की मुखालफत करने AIMIM चीफ और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी डिबेट में हिस्सा ले रहे थे।
ओवैसी ने पीएम के इजरायली दौरे को लेकर कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई भारतीय प्रतिनिधि दल इजरायल जा रहा है और बिना फिलीस्तान गए लौट आएगा। ओवैसी ने कहा कि भारत की नीति कभी इस तरह से नहीं रही है। पीएम मोदी की इस हरकत से इजरायल फिलीस्तीन को और ज्यादा दबाएगा। ओवैसी की बातें सुनकर शो की एंकरिंग कर रहीं अंजना ओम कश्यप ने कहा कि आपकी बातों से लगता है कि पीएम के इस दौरे से आपको बैठे बिठाए बिना बात के राजनीतिक खुराक मिल गई है।
इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ तीन नेताओं का गठबंधन पहला डोनाल्ड ट्रम्प जो खुलकर इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ बोलता है , दूसरा नेतन्याहू जो इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ खुलकर सैन्य कार्यवाही करता है और तीसरा जो इस्लामिक आतंकवाद पर राजनीतिक मजबूरियों के चलते बोलता कुछ नही खुलकर इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही से बचता भी है पर गुरू तो मोदी ही है । मोदी कोई मंत्र फूंकता है और दुनिया की महाशक्तियां उनके इशारे पर नाचती हैं । न बोलकर भी बहुत कुछ बोल जाना मोदी की खासियत है ।
मुस्लिम नेता हमेशा लोगों के दिमागों में यही बात ठूंसने की कोशिश करते रहते हैं कि इस्लाम एक शांति का धर्म है . और उसका आतंकवाद से कोई सम्बन्ध नहीं है .लेकिब जब भी कोई मुस्लिम आतंकवादी पकड़ा जाता है , तो यह मुल्ले मौलवी और नेता चुप्पी साध लेते .या कहने लगते हैं कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता है . तुष्टिकरण वाले अभी भी छाती कूट रहें हैं , भारत में 1 सांसद और 4 विधायक लेकर ओवैसी विदेश नीति बता रहा हैं , फिलिस्तीन जाने को कह रहे हैं उनके प्रवक्ता ।
आधार को पैन कार्ड के साथ लिंक करवाओ, बैंक एकाउंट के साथ लिंक करवाओ, एलपीजी कनेक्शन के साथ लिंक करवाओ, सोशल स्कीम के साथ लिंक करवाओ। वोटिंग कार्ड के साथ भी प्लीज आधार लिंक करवाओ ना हम तैयार हैं बहुत बोगस वोटिंग होती है जो रुक जाएगी उंगली स्कैन पहले हो, फिर वोटिंग हो। यदि चुनाव आयोग इस पद्धति को अपनाकर चुनाव करवाता है, बोगस वोटिंग पर तो असर पड़ेगा ही, मतदान वाले दिन राजनीतिक दलों द्वारा सड़क पर मेज-कुर्सी डाल जो यातायात में अवरोध उत्पन्न करते हैं, उस से जनता को बहुत राहत मिलेगी। चुनावो में होने वाले भ्रष्ट संसाधनों में भी। 


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